काफी समय हो गया था। किसी मंजिल की तलााााश में भटकतेेे। आज अचानक अपने ब्लॉग पर ध्यान गया तो लगा ज्ञानी नहीं तो बातूनी ही सही। कुछ तो बनते। लेकिन ब्लॉक के नाम के साथ मेरे जीवन का लक्ष्य भी बदलने लगा था। आज जब देखा तो ब्लॉग मानों मुझे चिढ़ा रहा हो कि क्या कर लिया तुमने। बड़े चले थे तीसमार खां बनने। सो मैंने झट से फिर से अपने मंजिल को एक नया नाम दिया। उसका रंग रोगन कर फिर से आप सब के बीच प्रस्तुत हूं। इस अनंत यात्रा में अपनी सही मंजिल को पाने की चाह में। बस अब तो इतनी ही चाह है कि रोज नहीं तो हर दो या तीन दिन में ही सही अपनों से मिलूं और इस यात्रा का आनंद उठाऊं। सो आज से फिर चल पड़ा हूं अपनी नई मंजिल को खोजने।
कुछ मिले न मिले दिल मिलना जरूरी है
और वो भी न मिले तो राह तो मिला ही लें
क्योंकि अनवरत आपको भी चलना है
अनवरत मुझे भी चलना है।
तो फिर अजनबियों की तरह अलग अलग चलें।
क्यों न सह यात्री बन एक साथ चें।
सफर भी कट जाएगा।
और मंजिल भी मिल जाएगी।
मंजिल मिल गई तो ठीक
नहीं तो उसकी याद भी ठीक।।
कुछ मिले न मिले दिल मिलना जरूरी है
और वो भी न मिले तो राह तो मिला ही लें
क्योंकि अनवरत आपको भी चलना है
अनवरत मुझे भी चलना है।
तो फिर अजनबियों की तरह अलग अलग चलें।
क्यों न सह यात्री बन एक साथ चें।
सफर भी कट जाएगा।
और मंजिल भी मिल जाएगी।
मंजिल मिल गई तो ठीक
नहीं तो उसकी याद भी ठीक।।